
हर 15 दिन में रंग बदलती हैं फूलों की घाटीः 1 जून से पर्यटकों के लिए फिर होगी गुलजार,तितलियों का भी मिलेगा संसार
हरिद्वार.
समुद्रतल से 12995 फीट की ऊंचाई पर चमोली जिले में स्थित है विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी (Valley of Flowers)। यहां 500 से अधिक फूल खिलते हैं। आप यह जानकर हैरान होंगे कि घाटी 15 दिन में अपना रंग बदल लेती है। एक जून से पर्यटक भी फूलों की घाटी में जाकर प्राकृतिक नजारो का का लुत्फ ले सकेंगे। फूलों की घाटी एक जून से 31 अक्तूबर तक पर्यटकों के लिए खुली रहती है। अक्तूबर के बाद पहाड़ों पर बर्फबारी के चलते फूलों की घाटी को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया जाता हैं।
यहां पर तितलियों का भी संसार है। इस घाटी में कस्तूरी मृग, मोनाल, हिमालय का काला भालू, गुलदार, हिम तेंदुएं भी रहते है। इस बार फूलों की घाटी की पैदल दूरी दो किमी कम हुई है। घांघरिया से फूलों की घाटी जाने वाला पैदल मार्ग वर्ष 2013 में आपदा से बामंणधौड़ में टूट गया था। तब इस मार्ग को खड़ी चढ़ाई में बनाकर यहां की दूरी दो किमी अधिक हो गई थी।
जैव विविधता के कारण यूनेस्को की धरोहर में शामिल
उत्तराखंड के चमोली जिले में फूलों की घाटी (Valley of Flowers) को उसकी प्राकृतिक खूबसूरती और जैविक विविधता के कारण 2005 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया। 87.5 वर्ग किमी में फैली फूलों की ये घाटी न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। हर साल देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यह घाटी आज भी शोधकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र है।
रास्ता भटक कर पहली बार पहुंचा था पर्वतारोहण दल
गढ़वाल के ब्रिटिशकालीन कमिश्नर एटकिंसन ने अपनी किताब हिमालयन गजेटियर में 1931 में इसको नैसर्गिक फूलों की घाटी बताया। वनस्पति शास्त्री फ्रेक सिडनी स्माइथ जब कामेट पर्वतारोहण से वापस लौट रहे थे तो रास्ता भटक जाने से वे फूलों की घाटी (Valley of Flowers) पहुंचे।वहां फूलों से खिली इस सुरम्य घाटी को देख मंत्रमुग्ध हो गए।
ब्रह्मकमल भी यहां खिलता है
1937 में फ्रेक एडिनेबरा बाटनिकल गार्डन की ओर से फिर इस घाटी में आए और तीन माह तक यहां रहे। उन्होंने वैली आफ फ्लावर्स नामक किताब लिखी तो विश्व ने इस अनाम घाटी को जाना। यहां जैव विविधता का खजाना है। यहां पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पापी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्मकमल, फैन कमल जैसे कई फूल यहां खिले रहते हैं।
घाटी मे दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पति, जड़ी बूटियों का है संसार बसता है। जून से अक्टूबर तक फूलों की महक फैली रहती है। फूलों की घाटी अगस्त सितंबर में तो फूलों से लगकद रहती है। यही नही वहा दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पति, जड़ी बूटियों का है
कैसे और कब आएं फूलों की घाटी
फूलों की घाटी पहुंचने के लिए बदरीनाथ हाइवे से गोविंदघाट तक पहुंचा जा सकता है। फूलों की घाटी में जाने के लिए शुल्क जमा करने के बाद दोपहर तक ही इजाजत है। यहां से तीन किमी सड़क मार्ग से पुलना और 11 किमी की दूरी पैदल चलकर हेमकुंड यात्रा के बैस कैंप घांघरिया पहुंचा जा सकता है। यहां से तीन किमी की दूरी पर फूलों की घाटी है।
फूलों की घाटी में जाने के लिए पर्यटक को बैस कैंप घांघरिया से ही अपने साथ जरूरी खाने का सामान भी ले जाना पड़ता है। क्योंकि वहां पर दुकाने नहीं है। इस साल सर्दियों में हुई रिकार्ड बर्फबारी से जून में खुलने वाली फूलों की घाटी में पर्यटकों को बर्फ देखने को मिल सकती है। घाटी में बामणधौड़ सहित कई जगहों पर हिमखंडों के भी मौजूद होने की संभावना हैं।
यहां आने वाले सैलानी इस बार जरूर बर्फ का दीदार कर सकेंगे। फूलों की घाटी एक जून से 31 अक्तूबर तक खुली रहती है। घाटी जाने वाले पर्यटक बैस कैंप घाघरिया से हेमकुंड की यात्रा भी कर सकते हैं। यहां से पांच किमी चढ़ाई चढ़कर हेमकुंड, लक्ष्मण मंदिर विराजमान है। यहां पर पवित्र हेमकुंड सरोवर भी है। हेमकुंड सिक्खों को सबसे उंचाई पर स्थिति तीर्थ स्थान हैं। (Valley of Flowers)
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